लड़कों की हँसी जो गूंजती थी आम की छाँव में,
अब वो सब कहानी बन कर बस उदास रहता है।
मेरे गाँव के गलियों में वो शोर कहां खो गया,
सब कुछ बदल गया, हर कोना अब उदास रहता है।बाबूजी की मेहनत से खड़ी हुई ये दीवारें,
खाली, टूटी-फूटी, अब तो बस उदास रहती हैं।
माँ की थकी आँखों में शोर नहीं बचा कोई,
पिता की धड़कन में भी क्या अब कोई बात रहती है?
सब बातें छोड़-छोड़ के, घर भी अब उदास रहता है।सावन के झूले टूटा दिए, होली के रंग फीके पड़े,
दीवाली के दीप भी अब कहीं बुझा-सा उदास रहता है।
खेल-कूद की वो गूँज, जो छतों पे रहती थी,
अब वो सब यादों में गुम, वो जहाँ बस उदास रहता है।शहर की चमक में खो गया मेरा हर एक भाई,
जिस्म तो साथ है पर दिल यहाँ उदास रहता है।
रिश्ते टूटे, सपने अधूरे रह गए,
मेरे गाँव की मिट्टी भी अब खुद से उदास रहती है।
@पाराशर
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