लड़कों की हँसी जो गूंजती थी आम की छाँव में,
अब वो सब कहानी बन कर बस उदास रहता है।


मेरे गाँव के गलियों में वो शोर कहां खो गया,
सब कुछ बदल गया, हर कोना अब उदास रहता है।बाबूजी की मेहनत से खड़ी हुई ये दीवारें,
खाली, टूटी-फूटी, अब तो बस उदास रहती हैं।


माँ की थकी आँखों में शोर नहीं बचा कोई,
पिता की धड़कन में भी क्या अब कोई बात रहती है?


सब बातें छोड़-छोड़ के, घर भी अब उदास रहता है।सावन के झूले टूटा दिए, होली के रंग फीके पड़े,
दीवाली के दीप भी अब कहीं बुझा-सा उदास रहता है।


खेल-कूद की वो गूँज, जो छतों पे रहती थी,
अब वो सब यादों में गुम, वो जहाँ बस उदास रहता है।शहर की चमक में खो गया मेरा हर एक भाई,
जिस्म तो साथ है पर दिल यहाँ उदास रहता है।


रिश्ते टूटे, सपने अधूरे रह गए,
मेरे गाँव की मिट्टी भी अब खुद से उदास रहती है।

@पाराशर


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By पाराशर

मिलिए पराशर से, जो Newzquest.in के प्रतिष्ठित लेखक हैं और अपनी विश्लेषणात्मक गहराई और पत्रकारिता की ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। पराशर की लेखनी व्यापक शोध और सूक्ष्म दृष्टि का मिश्रण है, जो ताजा खबरों पर विभिन्न दृष्टिकोणों को उजागर करती है। उनकी सुलभ शैली पाठकों को जोड़ती है और पारंपरिक कथाओं को चुनौती देती है, जबकि उनकी विशेषज्ञता जटिल मुद्दों की रिपोर्टिंग को समृद्ध बनाती है। परिणामस्वरूप, यह सोच-विचार करनेवाली, संतुलित रिपोर्टिंग होती है जो Newzquest के दर्शकों को सूचित निर्णय लेने और सुर्खियों के पीछे की कहानी देखने में समर्थ बनाती है।

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