सिद्धांत यानी संकल्प। मिथिलांचल में शादी की व्यावहारिक रस्म से पहले सिद्धांत कराने की परंपरा है। इस परंपरा की शुरुआत कब हुई इसकी सटीक जानकारी तो किसी के पास नहीं है, पर जानकार बताते हैं कि यह परंपरा पांच सौ साल से भी अधिक पुरानी है।वर-वधू पक्ष में बातचीत में रिश्ता तय होने के बाद दोनों पक्षों के लोग पंजीकार के यहां ‘सिद्धांत’ कराने जाते हैं।
इसमें यह देखा जाता है कि पिछली सात पीढ़ियों में दोनों पक्षों में कहीं कोई रिश्ता तो नहीं बन रहा है। अगर कोई रिश्ता बन रहा है तो पंजीकार शादी की सलाह नहीं देते हैं।
अगर रिश्ता नहीं बन रहा है तो पंजीकार शादी की सैद्धांतिक सहमति दे देते हैं। वैसे तो मिथिलांचल के चुनिंदा गांवों में मौजूद पंजीकारों के पास 20 पीढ़ी से भी अधिक का रिकॉर्ड रहता है, पर ‘सिद्धांत’ के लिए सात पीढ़ियों का ही मिलान किया जाता है।
पुराने जमाने में पंजीकारों के पूर्वजों ने मिथिलांचल के गांवों में घूमकर गोत्र, मूल आदि का रेकॉर्ड दर्ज किया था। यह पांडुलिपियों के रूप में आज भी संरक्षित है। पंजीकार इन्हीं पांडुलिपियों के सहारे ताड़ के पत्ते पर ‘सिद्धांत’ लिखते हैं।
आधुनिकता के इस दौर में ‘सिद्धांत’ कराने की परंपरा में कमी आई है। लेकिन, इसके बावजूद कुछ ऐसे भी लोग हैं जो विदेश में रहते हुए भी पंजीकार से फोन पर बात कर डाक से ‘सिद्धांत’ मंगाते हैं। मधुबनी जिले के पोखरौनी गांव के पंजीकार मोहन झा ने कहा कि साल भर में पूरे मिथिलांचल क्षेत्र में करीब 25 हजार लोग ‘सिद्धांत’ कराते हैं। ‘सिद्धांत’ यानी पंजी प्रथा की परंपरा राजा शिव सिंह के समय से भी पहले से चली आ रही है। इससे यह भी पता चलता है कि मिथिलांचल में शादी का रजिस्ट्रेशन बहुत पहले से होता आ रहा है। जरूरत है सरकार के स्तर पर इसके संरक्षण की।
निकट संबंधों में शादी से कैंसर, विकलांगता, हृदय रोग, अंधापन, पक्षाघात, मधुमेह जैसी आनुवंशिक बीमारियां होने की आशंका अपेक्षाकृत अधिक होती है। इमीडिएट जीन के कारण कई अन्य ठीक न होने वाली बीमारियां भी होने की आशंका रहती है। इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से ये हितकर नहीं है।
पाराशर: न्यूज़ क्वेस्ट